सबसे पहले ऑप्शन बाइंग की बात करते है
(1)ऑप्शन बाइंग क्या होती है
इससे हमें एग्जांपल से समझेंगे
तो मान लीजिए आप एक प्लॉट खरीदना चाहते हैं जिसकी प्राइस 10 लख रुपए है लेकिन आपको खबर मिली है कि उसे प्लॉट के सामने ही एक मॉल बनने वाला है जिससे उस प्लॉट की जो प्राइस है वह बढ़कर 20 लख रुपए हो जाएगी बट इसके साथ ही आपको एक और इनफार्मेशन मिली है कि हो सकता है कि उस प्लॉट के सामने से एक फ्लावर चला जाए जिससे प्लॉट फ्लाईओवर के नीचे आ जाएगा और प्लाट की प्राइस घटकर 5 लख रुपए हो जाएगी और अगर मान लो आप अभी प्लॉट नहीं खरीदते हो आप 1 महीने के बाद प्लॉट खरीदने जाते हो तो हो सकता है कि सामने वहां पर माल का काम शुरू हो गया होगा जिससे जो प्लाट की प्राइस है वह बढ़ जाएगी और तब वह प्लॉट आपको 10 लख रुपए में नहीं मिलेगा तो ऐसे में आप उस प्लॉट के ओनर के पास जाते हैं और उसको बोलते हैं कि मैं आपका यह 10 लख रुपए वाला प्लॉट खरीदना चाहता हूं लेकिन अभी नहीं मैं 1 महीने के बाद खरीदना चाहता हूं तो मैं आपसे चाहता हूं कि आप अभी मुझे यह राइट द दिन की एक महीने के बाद इस प्लॉट की प्राइस चाय कितनी भी होगी आप मुझे प्लॉट 10 लख रुपए मिल देंगे तो यहां पर जो प्लॉट सेल कर रहा है वह आपको बोलेगा कि अगर एक महीने बाद जो प्लाट की प्राइस है वह बढ़कर 11 लाख 12 लाख हो जाएगी तो फिर मैं
आपको 10 लाख में ही क्यों दूंगा तो आप उस प्लॉट के ओनर को कहते हैं कि ठीक है एक कम करो मैं आपको अभी ₹10000 दे देता हूं जो कि ऐसा प्रीमियम में आपको दे रहा हूं जिसके रिटर्न में मुझे आपसे बस इतना राइट चाहिए कि एक महीने बाद उसे प्लॉट की प्राइस चाहे कुछ भी हो आप मुझे वह प्लॉट 10 लाख नहीं देंगे तो अब यहां पर जो प्लॉट सेलर है उसको फ्री में ₹10000 मिल रहे हैं तो वह आपके साथ कॉन्ट्रैक्ट कर लेता है कि एक महीने बाद चाहे इस प्लॉट की प्राइस कुछ भी होगी वह आपको वह प्लॉट 10 लाख में देगा तो यहां पर जो प्लाट का ओनर है उसकी ऑब्लिगेशन बन जाती है कि क्योंकि आपने उसे ₹10000 का प्रीमियम पे किया है तो उसने वह प्लॉट आपको 10 लाख में ही देना है चाहे उसकी प्राइस कुछ भी हो तो अब मान लो जो प्लाट की प्राइस है वह एक महीने बाद बढ़कर 20 लख रुपए हो जाती है तो क्योंकि उसने आपके साथ कॉन्ट्रैक्ट किया है कि वह आपको वह प्लॉट 10 लाख में ही देगा तो उसे वह 10 लाख में ही देना पड़ेगा और ऐसे आपने सिर्फ ₹10000 इन्वेस्ट किए थे और आप को वह 20 लाख वाला प्लॉट 10 लख रुपए में मिल गया यानी यहां पर आपको 9 लाख 90000 का प्रॉफिट हो गया जबकि इसका उल्टा मान लो अगर वहां पर माल नहीं बनता है और वहां पर फ्लाईओवर बन जाता है जिससे उसे प्लॉट की जो प्राइस है वह 10 लाख से घटकर 5 लख रुपए आ जाती है तो ऐसे में आपको क्या लगता है कि आपको कितने का लॉस होगा अगर आपको लगता है कि आपको 5 लाख 10000 रुपए का लॉस होगा तो आप गलत सोच रहे हैं क्योंकि यहां पर आपको सिर्फ ₹10000 का लॉस होगा जो प्रीमियम अपने पे किया था क्योंकि अब आप उसे प्लॉट को खरीदेंगे ही नहीं तो इस तरीके से ऑप्शन बैंक काम करती है जिसमें आप एक प्रीमियम देते हैं जो कि इस केस में ₹10000 था और उसे प्रीमियम को देकर आप एक बड़ी एसेट को खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं जो कि इस केस में वह लैंड था लेकिन यहां पर जो आप कॉन्ट्रैक्ट कर रहे हैं वह आपका राइट है ना कि ऑब्लिगेशन है मतलब आप चाहे तो खरीदे या फिर ना खरीदें लेकिन जो ऑप्शन सेलर है जो कि इस केस में लैंड सेल करने वाला व्यक्ति था उसकी यह ऑब्लिगेशन होती है क्योंकि उसने प्रीमियम लिया है तो अब अगर आप चाहे तो उसको वह प्लॉट सेल करना ही पड़ेगा यानी उसको वह ऑप्शन सेल करना ही पड़ेगा
(2) ऑप्शन सेलिंग क्या होता है
से भी हम एक एग्जांपल से समझते हैं
ऑप्शन बाइंग समझ आ गई होगी तो चलिए अब ऑप्शन सेलिंग को भी समझ लेते हैं तो देखो अगर आप कोई ऑप्शन बाय कर रहे हो तो उसको कोई ना कोई तो सेल कर रहा होगा जैसे वह जो प्लॉट वाला एग्जांपल हमने देखा था जिसमें आप उसे प्लॉट को खरीदा जा रहे थे तो उसे प्लॉट को बेचने वाला एक प्लॉट सेलर भी तो था तो ऐसे ही ऑप्शन ट्रेडिंग में भी जब आप ऑप्शन बाय करते हैं तो आप ऑप्शन बार होते हैं और कोई ना कोई उसे ऑप्शन को सेल करता है जिसको हम ऑप्शन सेलर बोलते हैं तो चलिए यह ऑप्शन सेलिंग क्या होती है इसको भी वह प्लॉट वाले एग्जांपल से ही समझ लेते हैं तो वह जो प्लॉट वाला एग्जांपल था उसमें आप उसे प्लॉट को इसलिए खरीदना चाह रहे थे क्योंकि आपको खबर मिली थी कि वहां पर एक मॉल बनने वाला है जिससे उसकी प्राइस बढ़कर डबल हो सकती है या फिर वहां पर एक फ्लावर बन जाएगा जिससे उसे प्लॉट की प्राइस घटकर 5 लख रुपए आ सकती है तो ऐसे में एक बार ऑप्शन सेलर के पर्सपेक्टिव से देखते हैं जो कि इस केस में हमारा वह प्लॉट सेल करने वाला व्यक्ति है तो मान लेते हैं कि उसको पहले से पता है कि ना तो यहां पर माल बनने वाला है और ना ही यहां पर फ्लाईओवर बनने वाला है और एक महीने बाद मेरा जो प्लॉट है उसकी प्राइस 10 लख रुपए ही रहेगी तो आप जब उसे प्लॉट सेलर के पास जाते हैं और उसको बोलते हैं किमैं आपको ₹10000 प्रीमियम दूंगा इसके रिटर्न में मुझे बस आपसे इतना राइट चाहिए कि एक महीने बाद इस प्लॉट की प्राइस चाय कितनी भी हो आप मुझे प्लॉट 10 लाख में ही देंगे तो क्योंकि ऑप्शन सेलर को पहले से पता था कि ना तो यहां पर माल बनने वाला है और ना ही यहां पर फ्लावर बनने वाला है तो इस वजह से वह जो प्लॉट सेलर है वह आपसे ₹10000 लेकर यह कॉन्ट्रैक्ट आपके साथ कर लेता है क्योंकि उसको पता है कि एक महीने बाद कुछ भी नहीं होगा मेरे प्लॉट की प्राइस 10 की 10 लख रुपए रहेगी और ऐसे में मुझे ₹10000 अभी से फ्री में मिल रहे हैं तो क्यों न लूं तो इसलिए आपके साथ वह कॉन्ट्रैक्ट कर लेता है और आपसे ₹10000 ले लेता है तो ऐसे में मन को एक महीने बाद जैसा उसे प्लाट बेचने वाले व्यक्ति ने सोचा था वैसा ही होता है मतलब ना कोई माल बनता है ना कोई फ्लावर बनता है जिससे उसे प्लॉट की प्राइस 10 के 10 लख रुपए रहती है तो अब उसको फ्री में ₹10000 मिल जाएंगे और अब आप चाहे उसका प्लॉट खरीदो तब भी उसको बेनिफिट है और ना खरीदो तब भी क्योंकि आप ₹10000 पहले ही दे चुके हो तब भी उसको प्रॉफिट है तो इस तरीके से ऑप्शन सेलिंग काम करती है
मैंने आपको प्लॉट वाला एग्जांपल दिया था यह मैंने आपको सिर्फ समझने के लिए दिया था क्योंकि यह वाले एग्जांपल से इजी समझ आता है जब हम प्रैक्टिकल ऑप्शन ट्रेडिंग करते हैं जिसमें हम ऑप्शन बैंक करते हैं या ऑप्शन सेलिंग करते हैं उसे टाइम पर जैसी आप ऑप्शन बाय करते हैं आपको जरूरी नहीं है कि एक महीने बाद तक उसे ऑप्शन को होल्ड करने की जरूरत हो आप चाहे तो उसे ऑप्शन को बाय करने के 5 मिनट बाद ही अपनी पोजीशन को एग्जिट कर सकते हैं और सिमिलरली अगर आपने ऑप्शन सेल किया है तो उसे ऑप्शन को सील करने के 5 मिनट बाद ही आप चाहे तो अपनी पोजीशन को क्लोज कर सकते हैं इसके अलावा हमने यहां पर जो आपको एग्जांपल दिया था उसमें आपने अभी ₹10000 पे किया उसके बाद आपने एक महीने वेट किया लेकिन एक्चुअल में जब आप मार्केट में ट्रेड करते हैं उसे टाइम पर आपको एक महीने वेट करने की जरूरत नहीं है आपने यह 10000 वाला ऑप्शन मुझे भाई किया है अब वह सिम कांटेक्ट किसी और को सेल करदो वह किसी और को सेल कर देगा तो ऐसे आप जब चाहे ऑप्शन बाय कर सकते हैं और जब चाहे ऑप्शन सेल कर सकते हैं अब यहां पर आपके मन में क्वेश्चन आ रहा होगा कि जब मैं ऑप्शन बाय करने जा रहा हूं तो मुझे सिर्फ 5 से ₹7000 देने पड़ रहे हैं लेकिन जब मैं ऑप्शन सेलिंग के लिए आपको ज्यादा कैपिटल की जरूरत होती है कम से कम आपको ₹100000 चाहिए होती है एक ऑप्शन को सील करने के लिए तो अब आपको नहीं चाहिए या फिर ऑप्शन सेलिंग करनी चाहिए तो आप में से कुछ लोगों को हो सकता है लग रहा होगा कि ऑप्शन बाइंग बेटर है क्योंकि वहां पर जो प्रॉफिट है वह अनलिमिटेड हो सकता है और जो रिस्क है वह लिमिटेड है जबकि कुछ लोगों को हो सकता है लग रहा होगा कि ऑप्शन सीलिंग बेटर है क्योंकि वहां पर प्रॉफिट होने के चांसेस ज्यादा है तो इस क्वेश्चन का जो आंसर है यह सब्जेक्टिव है और यह इस बात पर भी डिपेंड करता है कि आपके पास कितनी कैपिटल है क्योंकि ऑप्शन सेल करने के लिए आपको ज्यादा कैपिटल की जरूरत होगी जबकि ऑप्शन बाय करने के लिए आप कम पैसों के साथ भी ऑप्शन बाइंग कर सकते हैं बट फिर भी मैं आपके लिए कुछ पॉइंट्स क्लियर कर देता हूं जिससे आपके लिए डिसीजन लेना आसान हो जाएगा
तो सबसे पहला पॉइंट है कि हमने आपको हीटर डी के जिसको हम टाइम डीके भी बोलते हैं उसके बारे में बताया था जिसमें जैसे-जैसे टाइम बढ़ता जाता है वैसे-वैसे जो ऑप्शन बायर होता है उसकी जो प्रीमियम होते हैं वह घटते चले जाते हैं तो इस केस में जो टाइम है वह ऑप्शन बायर के अगेंस्ट में काम करता है और जो ऑप्शन सेलर है उसके फेवर में काम करता है दूसरा जो शेर की प्राइस है वह आपको पता है कि तीन डायरेक्शन में मूव कर सकती है पहली शेर की प्राइस बढ़ सकती है दूसरा घट सकती है और तीसरा उसमें साइड वाइज मूवमेंट हो सकता है तो ऐसे में अगर आप ऑप्शन बायर है तो आपको तभी प्रॉफिट होगा जब जो शेर की प्राइस है वह आपके फेवर में कम करें जबकि अगर आप ऑप्शन सेलर है तो अगर शेर की प्राइस आपके फेवर में काम करेगी तब तो आपको प्रॉफिट हो गई लेकिन अगर शेर की प्राइस साइड वाइज भी रहेगी तो क्योंकि इस केस में जो टाइम या थीता डीके है वह आपके फेवर में काम करेगा तो अगर शेर की प्राइस साइड वाइज भी रहती है तब भी जो ऑप्शन सेलर है उसको प्रॉफिट होता है तो अब आप खुद डिसाइड कर सकते हैं कि आपको ऑप्शन बार बना है या ऑप्शन सेलर बना है या फिर एक और ऑप्शन है कि आप चाहे तो इन दोनों को मिलकर भी अपनी स्ट्रेटजी प्रिपेयर कर सकते हैं